भारतीय आईपीसी (Indian Penal Code, IPC) भारत में अपराध और दंड संबंधी कानूनों का मूल संहिता है। 1860 में ब्रिटिश शासन के दौरान बनाई गई यह संहिता विभिन्न अपराधों के परिभाषा, प्रकार, दंड और दंडनीयता के संबंध में सामान्य निर्देशन प्रदान करती है। यह भारतीय न्यायिक प्रणाली के मुख्य विधिक संदर्भों में से एक है।
भारतीय आईपीसी में कुल 511 धाराएं होती हैं, जिन्हें विभाजित किया गया है अनुशासनिक खंड (धारा 1 से 106 तक), अपराधिक खंड (धारा 107 से 120 तक), जनस्वास्थ्य खंड (धारा 121 से 158 तक), सरकारी विरोध खंड (धारा 159 से 270 तक), आपराधिक संबंधी खंड (धारा 271 से 489 तक), ज़िम्मेदारी के अपराधों के खंड (धारा 490 से 499 तक), धर्मांतरण और विविध खंड (धारा 500 से 511 तक) में।
इन धाराओं के माध्यम से, भारतीय आईपीसी ने विभिन्न अपराधों की परिभाषा और उनके लिए सजा को स्पष्ट कर दिया है। यह धाराएं अपराधों के प्रकार और तथ्यांतर के अनुसार दंड प्रदान करती हैं, जिससे न्यायिक प्रक्रिया को व्यवस्थित और न्यायसंगत बनाया जा सकता है।
कुछ महत्वपूर्ण धाराएं जैसे धारा 302 (हत्या), धारा 376 (बलात्कार), धारा 420 (धोखाधड़ी), धारा 498A (पति या ससुराल द्वारा स्त्री हिंसा), धारा 354 (छेड़छाड़) और धारा 377 (भारतीय कानून में गुदामैथुन के रूप में जाना जानेवाला हमला) जैसी धाराएं आमतौर पर मशहूर हैं।
भारतीय आईपीसी अपराधों, दंडों और न्यायसंगत प्रक्रियाओं के संबंध में एक महत्वपूर्ण कानूनी स्रोत है और इसका उपयोग भारतीय न्यायिक प्रणाली में अपराधियों की सजा प्रदान करने के लिए किया जाता है।
भारतीय आईपीसी में धाराएं अपराधों के प्रकार, उनके तत्व, दंड और दंडनीयता को विस्तार से वर्णित करती हैं। इसके अनुसार, प्रत्येक धारा एक विशेष अपराध के बारे में जानकारी प्रदान करती है और दंड की राशि या सजा को भी निर्धारित करती है। यह आपराधिक अपराधों से लेकर आपराधिक अपराधों, मानवता के खिलाफ अपराधों, सामाजिक और राजनीतिक अपराधों, आर्थिक अपराधों और धार्मिक अपराधों तक कवर करती है।
भारतीय आईपीसी अपराधियों को बाजीगरी, बलात्कार, लूट, हत्या, आतंकवाद, जालसाजी, जीवित जलाना, सती प्रथा, अत्याचार, उत्पीड़न, धोखाधड़ी, जालसाजी, विद्रोह, जालसाजी, छेड़खानी, सामाजिक अपवित्रता, बच्चों के खिलाफ अपराध, मानवाधिकारों के उल्लंघन, आपराधिक गतिविधियाँ, आत्महत्या, गुनाह बयान करना और सामरिक अपराध जैसे विभिन्न अपराधों को सजा देती है।
भारतीय आईपीसी की धाराएं सजायें को भी विशेष रूप से वर्णित करती हैं, जैसे कि कैद, जमानत, नकाबिल-ए-आज्ञा, मृत्युदंड, फांसी, उम्रकैद, नजरबंदी, जुर्माना, आर्थिक दंड, सामाजिक सर्विस, सजा की सीमा, दोषी की पहचान और विशेष आपराधिक अदालत के माध्यम से प्रदान की जाती है।
भारतीय आईपीसी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे उच्चतम न्यायालय द्वारा मान्यता प्राप्त एक प्रमुख कानूनी स्रोत के रूप में मान्यता प्राप्त की गई है। यह आपराधिक जघन्यता के खिलाफ व्यक्ति की सुरक्षा, समाज की सुरक्षा और न्याय के मूल्यों के प्रतीक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।